Wednesday, June 20, 2012

~ AFTER DEATH है क्या

इस किताब में मैंने मृत्यु के बारे में लिखा है| मृत्यु कैसे आती है, क्या इसका जीवन-चक्र है...और इसके क्या रूप हैं| इससे भी बड़ी बात कि मैंने इस पुस्तक में आत्महत्या के बारे में भी लिखा है| ये विशेषकर उनलोगों के लिए भी है जो आजकल आत्महत्या करने को ही अंतिम उपाय मानते है, परन्तु उसके फलस्वरूप होने वाले भयंकर परिणाम को नहीं जानते| अतः मैंने इस पुस्तक में आत्महत्या के परिणामों के बारे में विस्तार से बताया है|

दोस्तों, इसमें नरक और स्वर्ग के स्तरों के बारे में भी उल्लेख है| कैसे एक आत्मा और कब वह नरक या स्वर्ग में अपना स्थान बनती है| नरक या स्वर्ग आखिरकार कैसा होता है, हमारी आत्मा कैसे रहती है, इन सब के बारे में उल्लेख है|

अतः मृत्यु और जीवन-चक्र को समझाने के लिए मैंने एक कहानी भी लिखी है जिसका शीर्षक है "आत्मा गमन"| इस कहानी के माध्यम से आप मृत्यु के बाद की स्थिति को करीब से जानेंगे| भुत-प्रेतों के बारे में भी जानेंगे|
~ आशा करता हूँ की आपके लिए मेरी पुस्तक लाभकारी सिद्ध होगी !!!

Tuesday, June 19, 2012

~ मृत्यु क्या है [...what is death...]


दोस्तों, कुछ बातें ऐसी होती है, जिनको छुपाया या फिर दबाया नहीं जा सकता| वह हमारे सामने एक कड़वे सच की तरह होती है, जिसे हमें जाने या अनजाने में अपनाना ही पड़ता है| आप उनसे दूर नहीं भाग सकते और न वो आपसे दूर भागेगी| बस, बीच में दुरी रहती है तो सिर्फ समय की| इसी समय के एक छोर में हम रहते है और दुसरे छोर में वह (जिसकी मैं बात करने जा रहा हूँ)| समय जैसे-जैसे बीतता जाता है, बीच की दूरियाँ भी घटती जाती हैं और अंततः हमें उसे किसी भी रूप में अपनाना पड़ता है| या फिर यूँ कहिए, की हम इस पृथ्वी पर एक रोकेट (फुलझड़ी) के समान है, या फिर हमें रोकेट के रूप में भेजा जाता है| जब हम पृथ्वी पर आते हैं, उस रोकेट के पलीते में आग लगा दी जाती है| हमारे यथोचित पूर्व-जन्म के कर्मों के द्वारा ही उस पलीते का आकर बनाया जाता है| अतः, जैसे-जैसे हमारे दिन शुरू होते है, पलीता जलते-जलते धीरे-धीरे आकर में छोटा होता जाता है| और जैसे ही वह पलीता पूरी तरह जल जाता है, रोकेट पृथ्वी से छुट जाता है ऊपर की ओर| यह एक जीवंत उदाहरण की तरह ही है कि पलीते के पूरी तरह जलते ही जैसे रोकेट छूटता है, हम (हमारी आत्मा) भी ऊपर कि ओर चले जाते है| हमारा कर्म रूपी वह पलीता जैसे-जैसे जलता है, वैसे-वैसे हमारी आयु भी घटती जाती है| और अंत में हमारी आत्मा हमारा शरीर छोड़ देती है|

खैर, दोस्तों, आप सभी को उपर्युक्त बातों पर गौर कर लग रहा होगा कि मैं भी ये रोकेट,पलीता,कर्म,समय वगेरह के बारे में बात कर रहा हूँ| लेकिन ये सब और कुछ नहीं उसी महान सच को सार्थक करने का तथ्यरुपी विचार है, जिसका ओचित्य सदा से था,है और हमेशा रहेगा| हाँ दोस्तों, मैं बात कर रहा हूँ 'मृत्युं' की| मृत्युं क्या है - वैसे तो दुनिया में बहुत सारी सच्चाई है, लेकिन यह उन्ही सच्चाईयों में से एक अटल सच्चाई है| अतः, सीधे तौर पर कहें तो 'मृत्युं एक सत्य है'|

यह वही मृत्युं है, जिसके आगे न कोई टिक सका, न कोई इसका तोड़ निकाल सका; न कोई इसको भली-भांति आंक सका और न ही कोई इसे अपनाने की चेष्टा कर सका| यह मृत्युं सिर्फ हमारी अर्थात मनुष्यों की ही नहीं अपितु समस्त चर-अचर प्राणियों की है| जड़ से लेकर चेतन तक सब मृत्युं के शिष्य अवश्य बनते हैं| आप अभी शायद सोच रहे होंगे कि मैं जड़ कि बात मृत्युं से क्यूँ कर रहा हूँ| जड़ का आखिर मृत्यं से क्या लेना-देना| क्यूंकि जड़ में तो जीवन होता ही नहीं| लेकिन क्या दोस्तों, मृत्युं क्या सिर्फ चेतन को ही आ सकती है! मृत्युं एक चक्र की तरह है| जिसका ही जीवनकाल समाप्त होता है, मृत्युं उसे समाप्त कर देती है| यह एक गूढ़ रहस्य कि तरह है, लेकिन उधृत रूप में ही है| यहाँ मैंने मृत्युं कि सिर्फ चेतना से ही नहीं अपितु जड़ से भी तुलना कि है| तुलना अर्थात, मृत्युं को प्राप्त होना, उसे पाना| क्या आपको पता है, पत्थर भी कहीं-न-कहीं साँस लेते है| यह बड़े आश्चर्य कि बात है, लेकिन सत्य है| पुराणों में भी इसका उल्लेख किया गया है| अतः पत्थर भी बड़ते है, उनका आकार भी धीरे-धीरे मध्यम गति में बढता है| इनका भी एक जीवनकाल होता है| कुछ पत्थर टूटते है या तोड़ा जाता है या फिर घिसते हैं| ऐसे में ही तो उनका जीवनकाल समाप्त होता है और इनके लिए यही तो मृत्युं है| जब किसी जड़-वस्तु का आकार और अस्तित्व टूटता है, अर्थात उसकी मृत्युं होती है| यहाँ दोस्तों, मेरा जड़ का मृत्युं से तुलना कररने का यही उद्देश्य था|

अतः अब हम कह सकते हैं कि मृत्युं अर्थात जीवन-रूपी चक्र का समाप्त होना| मृत्युं के कई रूप होते हैं| कोई भी प्राणी यह नहीं आंक सकता कि मृत्युं कब उसके जीवन के दरवाजे पर उसकी छवि बनाएगी| कोई किसी रोग से पीड़ित होकर मरता है, तो कोई दुर्घटना का शिकार होता है; कोई दिल के दौरे से अचानक मरता है, तो कोई मृत्युं को जबरदस्ती गले लगा लेता है| वैसे देखा जाये तो मृत्युं एक तरह से अनहोनी है जिसे कोई नहीं टाल सकता| सरे प्राणियों का जीवनकाल पहले से ही लिखा जाता है, जीवनचक्र पहले से ही तय रहता है| और जीवनकाल के समाप्त होते ही मृत्युं उसे गले लगा लेती है| इसलिए कहा जाता है कि दुनिया में बहुत सरे प्रश्न है, जिसमे एक प्रश्न है - ' इस दुनिया में सबसे बड़ा सच क्या है ?' तो इसका उत्तर सिर्फ एक ही है - मृत्युं और केवल मृत्युं|

Monday, June 18, 2012

~ मृत्यु के रूप [...types of death...]


वैसे देखा जाये तो दोस्तों, मृत्यु का सीधा अर्थ एक ये भी है कि जीवन रूपी चक्र का समाप्त होना| मृत्यु के कई रूप होते हैं| कोई भी प्राणी यह नहीं आँक सकता कि मृत्यु कब उसके जीवन के दरवाज़े पर उसकी छवि बनाएगी| कोई किसी रोग से पीड़ित होकर मरता है, तो कोई दुर्घटना का शिकार होता है; कोई दिल कि धड़कन के बंद होने से मरता है, तो कोई मृत्यु को जबरदस्ती गले लगा लेता है| अतः देखा जाये तो मृत्यु एक तरह से अनहोनी है जिसे कोई नहीं टाल सकता| सारे प्राणियों का जीवनकाल पहले से ही लिखा जाता है, जीवनचक्र पहले से ही तय रहता है| और जीवनकाल के समाप्त होते ही मृत्यु उसे गले लगा लेती है| इसलिए कहा जाता है कि, दुनिया में बहुत सारे प्रश्न है - "इस दुनिया में सबसे बड़ा सच क्या है ?" तो इसका उत्तर एक ही है - मृत्यु और केवल मृत्यु| अतः इस कलयुग में अपने को अमर समझना बहुत ही बड़ी भूल है|

दोस्तों, अबतक तो आप मृत्यु से अवगत हो ही चुके है| अब मैं एक गूढ़ सच्चाई के बारे में बताना चाहता हूँ| जैसा कि मृत्यु के प्रकारों के बारे में जाना| अतः यहाँ प्रश्न यह है कि मृत्यु अलग-अलग रूपों में हमारे जीवन में क्यूँ आती है ? इस प्रश्न के उत्तर की सीमा तो बहुत है लेकिन मैं यहाँ संछिप्त रूप में इसे उजागर करना चाहता हूँ| दोस्तों, हमारे कर्मों के अनुसार ही मृत्यु का रूप तय होता है| यहाँ कर्म अर्थात कार्य / काम - किसी भी इंसान के जीवन का पुरे काल में जो कार्य करना होता है, या हम करते रहते है| अतः पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार या फिर अभी के कर्मों के अनुसार ही मृत्यु अपना रुप लेती है| इसलिए ये मनुष्य के कर्म पर निर्भर करता है की वह किस प्रकार की मृत्यु को प्राप्त करेगा| इस सन्दर्भ में कुछ उदाहरण हैं दोस्तों जिसको मैं पेश करना चाहता हूँ ::-

~ जैसे कोई व्यक्ति किसी दुसरे व्यक्ति को शत्रु के रूप में मानकर उसे गाड़ी से कुचल देता है तो अगले जन्म में उस व्यक्ति की मृत्यु किसी ऐसे ही दुर्घटना में होगी|
~ मान लीजिये कोई इंसान किसी जन्म में जमींदार रहता है और किसी किसान को बहुत सताता है, मरता है, पीटता है ; चाहे कोई भी कारण हो| ऐसी स्थिति में दो रूप हो सकते है; या तो वह किसान जमींदार की यातना सहते-सहते मृत्यु हो जाये, या फिर खुद ही मृत्यु को प्राप्त हो जाये| तो फिर यहाँ कालचक्र ऐसा रूप लेती है कि वही किसान अगले जन्म में या तो जमींदार के रूप में आता है और वह जमींदार किसान के रूप में; या फिर वह किसान किसी बड़े जानवर जैसे बाघ और वह जमींदार किसी छोटे जानवर जैसे हिरण का रूप धारण करता है| तो इस अवस्था में या तो वह जमींदार किसान होने के बाद बहुत कष्ट पाकर वैसी ही मृत्यु को प्राप्त होगा, या फिर वह हिरण उस बाघ का शिकार हो जायेगा| और यही नियति है दोस्तों, जो कि अटल है|

अतः इस तरह के ऐसे अनेक प्रकार कि मृत्यु है जिनसे प्रत्येक प्राणी अपने कर्मों के अनुसार अवगत होता है|
इस दुनिया में ऐसे कई लोग है, जिन्होंने मृत्यु को करीब से देखा है, जाना है, महसूस किया है| मृत्यु के दरवाज़े के अन्दर जाकर वे फिर से दरवाज़ा खोलकर बाहर निकलने में समर्थ हुए है| ऐसा भी कर्म-चक्र के फलस्वरूप ही होता है| अतः इसके कई कारण हो सकते है| उन प्राणियों को मृत्यु से अवगत कराया जाता है| अतः ऐसी बहुत साडी सत्य घटनाएँ है, जिसमे लोग मर के फिर जी उठे है| मृत्यु को समझना उतना भी कठिन नहीं है लेकिन उसे प्राप्त करना बहुत ही आसान है| जबतक कि कालचक्र पूरा नहीं हो जाता, वह व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त नहीं हो सकता| लेकिन अंततः मृत्यु अटल है|

Sunday, June 17, 2012

जीवन-मृत्यु चक्र [...life-death cycle...]


हाँ तो दोस्तों, मैं यहाँ जीवन और मृत्यु के चक्र के बारे में बताने जा रहा हूँ| आखिर क्या होता है मृत्यु के बाद...| हमलोग कहा जाते है आखिर में| हमारी क्या स्थिति होती है वहाँ पर| किस अवस्था में रहते है हम या यूँ कहे तो हमारी आत्मा| तो दोस्तों, मृत्यु के बाद भी ऐसा ही एक जीवन होता है, जैसा इस पृथ्वी-लोक में विद्यमान है| लेकिन यह जीवन एकदम अलग, एकदम परे होता है| मृत्यु के बाद का जीवन किसी भी रूप में हो सकता है| वह जीवन मूलतः वर्तमान कर्मफल के अनुरूप ही प्राप्त होता है| जीवन का यही तो चक्र है| अर्थात दोस्तों, मृत्यु के पहले का जीवन उसके पूर्वजन्म के कर्मों के अनुरूप और मृत्यु के बाद का जीवन उसके वर्तमान जन्म के कर्मों के अनुरूप होता है| इसी चक्र के आवरण में ही ये पूरी दुनिया कायम है, और इसे चलानेवाले हमारे सर्व-शक्तिमान भगवान्|

मृत्यु के बाद का जीवन या तो बहुत ही ख़राब होता है या तो बहुत ही अच्छा| मृत्यु के बाद ऐसे बहुत सारे स्तर होते हैं, जिन्हें हमें पार करना होता है| उन स्तरों में आत्माएँ या तो यातनाएँ पाती हैं या फिर सुख| उन स्तरों को पार करके ही आत्माएँ आगे बढ़ती है और विकसित होती है| ये सारे स्तर भी हमें हमारे पूर्व और वर्तमान कर्म के अनुसार ही मिलते हैं| तात्पर्य यह की, हम इस जीवन में जैसे कर्म करेंगे, हमें वैसा ही फल अगले जन्म में मिलेगा|


जीवन<------------>मृत्यु<------------>जीवन


वैसे देखा जाये तो दोस्तों कुल मिलकर मुख्यतः १४ (चौदह) स्तर हैं| ७ (सात) स्वर्ग के और ७ (सात) नरक के| जो जैसा बोयेगा उसको वैसा ही फल मिलेगा|

स्वर्ग ~ स्वर्ग के स्तरों की अगर बात की जाये तो कहा जायेगा कि सही में स्वर्ग, स्वर्ग ही है| दोस्तों, यहाँ पर रहने वाले स्तरों कि आत्माओं के अपने अलग ही गुण होते है| उनकी अपनी एक इच्छाशक्ति होती है, जिन्हें उनको जगाना होता है| और एक बार अगर वो इच्छाशक्ति जाग जाये तो फिर ऐसी आत्माएँ अपने इच्छानुसार कुछ भी गढ़ सकती है स्वर्ग में| एक ही पल में घर, बागीचे, पेड़-पौधे, मंदिर कुछ भी बना सकती हैं| यहाँ कभी अँधेरा नहीं होता| चारो तरफ हमेशा ही रौशनी होती है| जीवन सुखमय होता है| बस चाहिए कि ईश्वर कि आराधना करे| उनकी उपासना करे| इन स्तरों में रहने वाले आत्माओं का जीवनकाल भी या तो बहुत ज्यादा होता है या फिर कम| ये पूर्णतया निर्भर करता है उस आत्मा पर| उसकी ईश्वर-भक्ति, आस्था पर| जो जितनी शक्ति से और मन लगाकर भगवान् कि आराधना करता है, उन्हें याद करता है, वैसी आत्माएँ जल्दी ही ऊपर के स्तरों में जाने लगती है| और धीरे-धीरे ऊपर जाते-जाते अंत में उन्हें मुक्ति कि प्राप्ति होती है| उन्हें भगवान् के दर्शन होते है| जैसे-जैसे वे ऊपर के स्तरों में जाने लगते है, उनकी शक्ति बढ़ती जाती है| उन आत्माओं में एक तेज़-सा आने लगता है|
लेकिन दोस्तों, यहाँ ये भी है कि जो आत्माएँ स्वर्ग में पहुँचने के बाद पृथ्वी-लोक का मोह त्याग नहीं कर पाते, जो हमेशा अपने-जनों को याद करते रहते है, भगवान् कि आराधना नहीं करते; वे ऊपर के स्तरों में नहीं जा पाते| दरअसल उनका पुनर्जन्म हो जाता है| वे फिर से पृथ्वी-लोक में आ जाते है| जिन आत्माओं को संसार का लालच,मोह होता है, वे कभी ऊपर कि ओर नहीं उठ सकती| उन्हें पृथ्वी अपनी ओर खिंच लेती है| और यही चक्र चलता रहता है|

नरक ~ नरक तो अपने-आप ही में बहुत दुखदायी जगह है| क्या कहूँ दोस्तों, नरक के बारे में जितना वर्णन करूँ उतना ही कम लगता है| खैर, नरक एक ऐसी जगह है जहाँ भूत,प्रेत,पिशाच और कई प्रकार कि बहुत बुरी-से-बुरी खतरनाक आत्माएँ रहती है| कुछ आत्माएँ बाद में अच्छी भी हो जाती हैं| उनको अपने कर्मों का पछतावा होता है| परन्तु कुछ तो सिर्फ बदला लेने,डराने और हानि पहुँचाने में विश्वास रखते है| ये वहीँ आत्माएँ होती है, जो पृथ्वी लोक में आते है और लोगो को डरते है या उनका जीवन ही समाप्त कर देते हैं| खैर इनके बारे में मैं बाद में विस्तार से बताउँगा| फिलहाल बात ये है कि नरक आखिर में कैसा होता है| संछेप में अगर कहूँ तो नरक सही में नरक ही है| यहाँ चरों तरफ अन्धकार ही अन्धकार फैला रहता है| न खाने को कुछ रहता है न पीने को कुछ| कोसों तक, मरुभूमि जैसी जगह फैली होती है| एकदम विरान, एकदम ही निर्जन| कोई कही नहीं है| सिर्फ भूत और प्रेत ही दिखाई देते हैं| कोई आत्माएँ न जाने ५०० या उससे अधिक वर्षों से है तो कोई न जाने कितने वर्षों तक| उनलोगों कि जल्दी मुक्ति नहीं होती| यहाँ पर तो खासकर वैसी आत्माएँ पहले आती है जिन्होंने अपने जीवनकाल में पृथ्वी में आत्महत्या कि है| क्यूँकि कहा जाता है कि आत्महत्या करना एक बहुत ही बड़ा पाप होता है|
अगर इन आत्माओं को अपने किये का पछतावा होता है तो इनका फिर से जन्म होता है, ताकि ये अपनी गलती को सुधार सके| इससे वे फिर ऊपर अर्थात स्वर्ग में जाने में समर्थ होते है| परन्तु ये तभी होता है जब ये पृथ्वीलोक में जाकर कोई गलत कार्य न करे| अन्यथा ये फिर से नरक में ही आ जाते हैं| और ये चक्र चलता रहता है| कुछ आत्माओं को जब मुक्ति नहीं मिलती तो वे पृथ्वीलोक में आकर घूमते रहते है| इनका मकसद होता है कि ये किसी भी प्रकार से किसी अच्छे आत्मा में घुस पायें| इसलिए ये कहा भी जाता है और सच भी है कि अच्छी आत्मा वाले व्यक्तियों को मरने के बाद उनका तुरंत दाह-संस्कार कर देना चाहिए| क्यूँकि यही भूत-प्रेत और बुरी आत्माएँ उसमे प्रवेश करना चाहती हैं|

एक बार जब जीवन-मृत्यु का चक्र शुरु होता है तो यह चलते रहता है, जबतक कि हमें मुक्ति नहीं मिल जाती| और दोस्तों मुक्ति का बस एक ही उपाय है, कि हम जबतक इस दुनिया में है, हमेशा कोशिश करे कि अच्छा ही कार्य करे| अपना कर्म सही रखे| सदा ईश्वर कि आराधना करें, उनकी पूजा करें| क्यूँकि मुक्ति को छोड़ बाकी सब मोह है, माया से परिपूर्ण है| इसका मतलब ये भी नहीं है कि आपको होश आये और आप कोई सन्यासी या साधू बन जाये| आप अवश्य ही अपना कर्त्तव्य निभाए| अपने प्रति, अपने माता-पिता और परिवार के प्रति| बस एक समय के बाद से बस उनके प्रति धयान दें| धर्म से जुड़े रहें| हर-एक काम में उनका धयान करें| और क्या कहूँ, उनसे प्यार करें, बातें करने कि कोशिश करें| ये सब मैं यूँ ही नहीं कह रहा हूँ| यही सच्चाई है| हम जैसे दूसरों से बात करते हैं, उनसे भी कर सकते हैं| बस जरुरत है तो उन्हें अनुभव करने की, जो की बहुत सरल भी है|
तो दोस्तों यही था जीवन-मृत्यु का चक्र, एक खत्म होता है तो दूसरा शरू| परन्तु इसकी डोर हमेशा से ही हमारे हाथ में ही होती है| अतः हम इस चक्र को खुद समाप्त भी कर सकते है| और अबतक तो आप समझ भी गए होंगे कैसे...!

Saturday, June 16, 2012

आत्महत्या के भयावह परिणाम [...dangerous results of suicide...]


आत्महत्या..., वैसे देखा जाय तो दोस्तों आत्महत्या करना कितना ही आसान है| आये दिन लोग आत्महत्या करते ही है| चाहे कारण कुछ भी हो| कोई प्यार में नाकामयाबी के कारण तो कोई अच्छे नंबर नहीं लाने पर, तो कोई अपने घर-परिवार की अशांतियों के कारण तो कोई बहुत तनाव के कारण| स्थितियाँ चाहे कुछ भी हो, आत्महत्या करना तो आजकल एक फैशन बन गया है, एक चलन बन गया है| इंसान को लगता है की अगर अपने दुखों से छुटकारा पाना है तो आत्महत्या कर लो| बस उन्हें और कुछ नहीं दिखाई देता| वे समझते है कि यही इसका उपाय है, चाहे कुछ भी हो जाये ; कम-से-कम छुटकारा तो मिल जायेगा| लेकिन वे ये नहीं जानते कि इसके बाद उनकी आत्मा के साथ या कहा जाये तो मरने के बाद उनके साथ क्या होगा| आत्महत्या को हर पुराणों में भी एक पाप कहा गया है| दरअसल एक बहुत बड़ा पाप| लोग ये नहीं समझते कि आत्महत्या करने से मौत तो तुरंत हो जाती है, लेकिन आत्मा को कितना कष्ट पहुँचता है इसके बारे में अंदाज़ा नहीं लगाते| क्यूंकि उन्हें तो बस छुटकारा चाहिए, चाहे कैसे भी मिले, और बाद में इसका क्या परिणाम हो, कोई फर्क नहीं पड़ता|

आत्महत्या करना बहुत ही सरल है, लेकिन उसके परिणामों को झेलना बहुत ही कठिन और भयावह| तो दोस्तों मैं इस शीर्षक के सन्दर्भ में यही कहना चाहता हूँ कि आत्महत्या करने के क्या-क्या परिणाम हो सकते हैं| जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि आत्महत्या करने से आत्मा बहुत ही तड़प-तड़प कर मरती है| लेकिन इसके बाद हमलोग निश्चित रूप से नरक को ही जाते है| नरक में तो जैसे कई स्तर है, तो उन सभी स्तरों में सबसे निम्न स्तर में आत्महत्या करने वालों को जगह मिलती है| एक तो नरक में स्थान और ऊपर से एकदम निम्न स्तर में| इन आत्माओं कि तुरंत मुक्ति भी नहीं हो सकती| ये इतने वर्षों से भटकते रहते हैं कि उन्हें खुद भी नहीं पता चलता ; और लेकिन यातनायें भी उन्हें सहनी पड़ती हैं| ऐसी-ऐसी वेदनायें जिनकी तो कोई सपने में भी कल्पना नहीं कर सकता|

व्यक्ति जिस चीज़ से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या करता है, उस चीज़ से वह कभी छुटकारा पा ही नहीं सकता| दरअसल वही चीज़ उसे नरक में आ घेरती है| मेरे कहने का तात्पर्य है कि जैसे किसी इंसान ने आत्महत्या की क्यूंकि वह पढ़ाई नहीं करता था और उसके पिताजी उसे बहुत डाटते थे| अब अगर वह इंसान इसी झंझट से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या कर लेता है, तो उसे नरक में भी वही फिर से झेलना पड़ता है| वही पिताजी की रोज की डाट, सारी घटना जो पृथ्वी-लोक में उसके साथ घटती है, फिर से नरक में भी उसके साथ घटेगी| जिस वजह से वह छुटकारा पाने का कोशिश किया था, वही वजह उसका मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ती| आप ही सोचिये ज़रा अगर ऐसा नहीं होता इस संसार में आजकल हर के मन में तनाव इतना बढ़ गया है कि तब सारे व्यक्ति ही आत्महत्या कर लेते, और उन्हें हर चीज़ से छुटकारा मिल जाता| एक ही बार में काम ख़त्म|

मैं यहाँ कुछ उदाहरण बताने जा रहा हूँ, जिससे आपको कुछ स्थितियों के बारे में पता चलेगा कि काफी वर्ष बिताने के बाद क्या होता है इन निम्न स्तरों में... !!!

~ जैसे कुछ स्तरों में एक बहुत छोटा सा छेद है, जिसको अगर कोई पार कर ले तो स्वर्ग में पहुँच जाये| अर्थात इस छेद के उस तरफ प्रकाश-ही-प्रकाश है, स्वर्ग का आनंद है| लेकिन उसको पार करने में बड़ा ही कष्ट है| क्यूंकि उसे पार करने में अगर बीच में अटक जाये तो कमर टूट जाने की आशंका रहती है, हाथ-पैर तक अलग हो सकते है| और और ऐसा होने पर तो फिर वही रह जाना पड़ता है| और अगर पार कर गए तो अलौकिक स्वर्गीय आनंद| प्रायः ऐसा होता नहीं है| ये जरुर हो सकता है कि आप पार कर गए हों, लेकिन कई सैकड़ों वर्षों बाद| पर आपको उसके पहले तक कि सारी पीडायें सहनी होंगी| और दूसरी बात ये भी हो सकती है कि, आपके जाननेवाले आत्मायें आपको उस छेद से अपनी तरफ खिंच ले| क्यूंकि उस छेद के उस पार अनेक ऐसी आत्माएं घूम रही है जो स्वर्ग कि उच्च-स्तरीय आत्माएं होती हैं| और जो कि हो सकता है आपको जानती भी हों|

~ ऐसे स्तरों में कुछ ऐसी स्थितियां होती हैं, जिसमे कि आप नदी के इस पार है जो कि नरक है और नदी के उस पार स्वर्ग जैसी अनुभूति है| बहुत सारी पुण्य-आत्माएं नदी के उस पार भगवान् का भजन-कीर्तन कर रही हैं| लेकिन नदी छोटी होने के बावजूद भी पार करना बहुत कठिन है| क्यूंकि नदी में अनेक ऐसे जीव है जैसे साँप, मगरमच्छ, खूंखार बड़ी मछलियाँ जो कि ताक लगाये रहती है शिकार के लिए| और अगर उनके जंजाल में फंस जाये तो फिर आप निकल ही नहीं सकते|

कुछ तो ऐसी भी है कि एक बहुत संकरा, लम्बा-सा रास्ता है, जिसे तय करके स्वर्ग के पहले स्तर ताक पहुंचा जा सकता है| परन्तु यहाँ भी उस रस्ते को पार करना आसान नहीं है| उस रस्ते के दायें और बाएं दोनों तरफ या तो खाई है या फिर खूंखार भेड़िये, बाघ जो ऊपर कि ओर मुँह करके खड़े है| एक बार कोई फिसला ऊपर से कि बस एकदम नीचे और उसके बाद दोस्तों आप समझ ही सकते है कि क्या हो सकता है|

दोस्तों..., आत्महत्या करने के बाद कि दुर्दशा बहुत ही खतरनाक और भयंकर होती है| इस नरक के निम्न स्तर पर पहुँचने के बाद भूख लगने पर भी भूख नहीं मिटती और न ही प्यास बुझती है| कोसों तक जैसे कोई मरुस्थल फैला हो| एकदम निर्जन, एकदम शांत| सिर्फ बुरी-बुरी आत्माएं घूम रही है| सब जैसे अकेले है| चारों तरफ हर जगह अँधेरा ही अँधेरा| कही रौशनी की कोई गुंजाईश ही नहीं है| न सूर्य की कोई किरण है, और न चाँद का प्रकाश|
अतः दोस्तों सही मायने में कहा जाये चाहे कितना भी कष्ट क्यूँ न हो, आत्महत्या एकदम नहीं करनी चाहिए| उसे गले नहीं लगाना चाहिए| क्यूंकि जिस वजह से हमलोग उससे पीछा छुड़ाने की कोशिश करते है, वो हमारा पीछा छोड़ती ही नहीं है| जिंदगी यूँ ही इतनी सरल नहीं है| ठीक है तनाव होती है बहुत, लेकिन आत्महत्या ही उसका उत्तर या उपाय नहीं है| दुःख के बाद सुख आती ही है| बस समय की देरी होती है| और ऐसा इसलिए भी होता है की आप जरुर ही पिछले जन्म में कोई पाप किये होंगे, तभी ऐसा दुःख आपके जीवन में दस्तक देता है| उपाय यही है की भगवान् का साथ न छोड़े उस समय, क्यूंकि जिन्होंने दुःख दिया है वही उसे दूर भी करेंगे| बस जरुरत है तो सिर्फ उनपर आस्था की, विश्वास की|

नोट - मेरी माने तो कोई भी अगर आत्महत्या करने की सोचे या कोशिश भी करे तो उसे तुरंत मना करे ऐसा करने को... !!!